Sunday, January 09, 2022

क़ुरबतें भी नहीं, फ़ासिले भी नहीं आप मिल भी गये, यूँ मिले भी नहीं * ज़िन्दगी एक तन्हा मुसलसल सफ़र मन्ज़िलें भी नहीं, क़ाफ़िले भी नहीं * किस तरह तेरी यादों को आवाज़ दूँ दरमियाँ दर्द के सिलसिले भी नहीं * मौसमे-गुल भी जाता है अब देखिए फूल मेरे चमन में खिले भी नहीं * दिल मेरे कौन सी यह जगह है, जहाँ मसरतें भी नहीं हैं, गिले भी नहीं....... '' कैसे खुद को जुदा करूँ , मेरे अंदर बेशुमार हो तुम !''

1 Comments:

Blogger Mads said...

''अजब ये मरहला आया के हिज्र औ क़ुर्ब यकसां हैं ,
असर अब कुछ नहीं होता जफ़ा कर लो , वफ़ा कर लो ''

2:43 AM  

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