Monday, November 08, 2021

हैं अजब शहर कि ज़िंदगी न सफ़र रहा न कयाम है, कही कारोबार सी दोपहर कही बदमिज़ाज सी शाम है, यूही रोज़ मिलने कि आरज़ू बडी रख रखाव कि गुफ्तुगू, ये शराफ़ते नही बेगरज़ उसे आपसे कोई काम है ** वो दुआओ कि बरकते वो नसीहते वो हिदायते ये मतालबो का खुलुस है ये ज़रूरतो का सलाम है वो दिलो मे आग लगाएगा मैं दिलो कि आग बुझाउंगा, उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है, ** न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख्याल कर, बहुत साल बाद मिले है हम , तेरे नाम आज कि शाम है ~ बशीर बद्र

0 Comments:

Post a Comment

<< Home