Sunday, August 23, 2020


यह कैसी चुप है कि जिसमें पैरों की आहट शामिल है कोई चुपके से आया है .... चुप से टूटा हुआ .... चुप का टुकडा .... किरण से टूटा हुआ किरण का कोई टुकडा यह एक कोई "'वह'' है जो बहुत बार बुलाने पर भी नही आया था .... और अब मैं अकेली नहीं मैं आप अपने संग खड़ी हूँ शीशे की सुराही में नज़रों की शराब भरी है ... और हम दोनों जाम पी रहे हैं वह टोस्ट दे रहा उन लफ्.जों के जो सिर्फ़ छाती में उगते हैं यह अर्थों का जश्न है ... मैं हूँ ,वह है .. और शीशे की सुराही में नज़रों की शराब है -अमृता प्रीतम

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