Wednesday, December 15, 2021

मयस्सर डोर से ❄️ फिर एक मोती झड़ रहा है , तारीखों के ज़ीने से दिसम्बर उतर रहा है |❄️ . कुछ चेहरे घटे , चंद यादे जुड़ी गए वक़्त में, उम्र का पंछी नित दूर और दूर उड़ रहा है |...❄️ . गुनगुनी धूप और ठिठुरी राते जाड़ो की, गुज़रे लम्हों पर झिना झिना ❄️ पर्दा गिर रहा है। फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है ..❄️ मिट्टी का जिस्म एक दिन मिट्टी में मिलेगा , मिट्टी का पुतला किस बात पर अकड़ रहा है | . ज़ायका लिया नही और फिसल रही ज़िंदगी ,❄️ आसमां समेटता वक़्त बादल बन उड़ रहा है | .❄️ ...फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है ✌❄️ ❄️

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