Monday, March 08, 2021

नारी नर की जननी नारी बनी प्रेमिका नर की, नारी नर की भगिनी नारी ही से सारी सृष्टि, नारी ही से नर है नर कितने ही हो पर, नारी ही से घर है . अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर गुलज़ार साहब की एक बेहद संवेदनशील रचना ♥ ྀ╰⊰✿ कितनी गिरहें खोली हैं मैने कितनी गिरहें अब बाकी हैं पांव मे पायल, बाहों में कंगन, गले मे हन्सली, कमरबन्द, छल्ले और बिछुए नाक कान छिदवाये गये और ज़ेवर ज़ेवर कहते कहते रीत रिवाज़ की रस्सियों से मैं जकड़ी गयी उफ़्फ़ कितनी तरह मैं पकड़ी गयी... अब छिलने लगे हैं हाथ पांव, और कितनी खराशें उभरी हैं कितनी गिरहें खोली हैं मैने कितनी रस्सियां उतरी हैं कितनी गिरहें खोली हैं मैने कितनी गिरहें अब बाकी हैं अंग अंग मेरा रूप रंग मेरे नक़्श नैन, मेरे भोले बैन मेरी आवाज़ मे कोयल की तारीफ़ हुई मेरी ज़ुल्फ़ शाम, मेरी ज़ुल्फ़ रात ज़ुल्फ़ों में घटा, मेरे लब गुलाब आँखें शराब गज़लें और नज़्में कहते कहते मैं हुस्न और इश्क़ के अफ़सानों में जकड़ी गयी ♥ ྀ╰⊰✿ https://youtu.be/OsKsL3Zi2uk See less
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