Wednesday, January 20, 2021

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना जरूरी है उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है --- वसीम बरेलवी मेरी "माँ " हर जगह सहाई है ! उन्होंने ही तो मुझे सही " राह" दिखाई है! यह बात मेरी खुद की आज़माई है! "जय माता की " जय माता की" बोला करो "दिल से । यह नाम ही बड़ा "करिश्माई" है !! 💞💖💞जय माता की जी ।💞💖

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