Friday, January 29, 2021

नील अम्बर से रोज़ उतरती है, चाँद कमंडल लिए गुज़रती है चाँद कमंडल लिए गुज़रती है, रात की जोगन. . . . . .. . सूफ़ियों जैसी आँखों में सपने फूंकने आती है. . . . . नींद कटोरे आँखों के जलवों से भर जाती है. . . . . बावरी रात की जोगन ओस के मोती रोज़ छिड़कती है चाँद कमंडल लिए गुज़रती है. . . क्यूँ उठता है रोज़ धुआं, क्या ये रोज़ पकती है. . . . . . तारों की चिन्गारियों से, सूरज सुलगाती है. . . . . . . . . बावरी रात की जोगन, चाँद कड़ा हर रोज़ बदलती है रात की जोगन. . . . . . . . . . . . .Gulzar

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