Thursday, September 03, 2020


मैं जब भी लिखती हूँ,पीर लिखती हूँ... यादों की धुंधली,तस्वीर लिखती हूँ... बंधनों की गिरफ्त से,जो बह नहीं पाता... मैं कागज़ पर आंखों का,वो नीर लिखती हूँ.....💦🏵️💞💫🌼🌾🌼🌿🌾

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