" हाँ यूँ तो वो तुम सब का
सभी का, सारी दुनिया का
मगर मैं,
जिस अन्धेरी सी सुरंग से जाता हूँ मिलने
सुरंग वो ख़ास मिल्कियत है मेरी
मेरी है और मेरे वास्ते, मख़्सूस है वो
कभी मैं बात करता हूँ
या कोई गुफ़्तगू होती है उससे तो
ज़ुबां तब ये नहीं होती
वो मेरी और उस की, ख़ास है, दोनों की,
दोनों के लिए मख़्सूस है वो !
मगर जब उस के क़दमों में
उठा कर फूल रखता हूँ
ज़मी की मिट्टी से खिलती हुई
वो लोगों की ज़ुबां है !
उन्हीं फूलों की निस्बत से
वो मेरा, और तुम्हारा भी और सब का है !! "
सभी का, सारी दुनिया का
मगर मैं,
जिस अन्धेरी सी सुरंग से जाता हूँ मिलने
सुरंग वो ख़ास मिल्कियत है मेरी
मेरी है और मेरे वास्ते, मख़्सूस है वो
कभी मैं बात करता हूँ
या कोई गुफ़्तगू होती है उससे तो
ज़ुबां तब ये नहीं होती
वो मेरी और उस की, ख़ास है, दोनों की,
दोनों के लिए मख़्सूस है वो !
मगर जब उस के क़दमों में
उठा कर फूल रखता हूँ
ज़मी की मिट्टी से खिलती हुई
वो लोगों की ज़ुबां है !
उन्हीं फूलों की निस्बत से
वो मेरा, और तुम्हारा भी और सब का है !! "


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