Wednesday, February 26, 2020

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
  मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे  

तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे 
  तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे  

जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो कि
 आस-पास की लहरों को भी पता न लगे  

वो फूल जो मिरे दामन से हो गए मंसूब 
  ख़ुदा करे उन्हें बाज़ार की हवा न लगे 

  न जाने क्या है किसी की उदास आँखों में  
वो मुँह छुपा के भी जाए तो बेवफ़ा न लगे 

  तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर कि
 तेरे बा'द मुझे कोई बेवफ़ा न लगे 

  तुम आँख मूँद के पी जाओ ज़िंदगी 'क़ैसर' कि
 एक घूँट में मुमकिन है बद-मज़ा न लगे ..
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