Friday, January 31, 2020


नील अम्बर से रोज़ उतरती है,
चाँद कमंडल लिए गुज़रती है
चाँद कमंडल लिए गुज़रती है,
रात की जोगन. . . . . .. .
सूफ़ियों जैसी आँखों में
सपने फूंकने आती है. . . . .
नींद कटोरे आँखों के
जलवों से भर जाती है. . . . .
बावरी रात की जोगन
ओस के मोती रोज़ छिड़कती है
चाँद कमंडल लिए गुज़रती है. . .

क्यूँ उठता है रोज़ धुआं,
क्या ये रोज़ पकती है. . . . . .
तारों की चिन्गारियों से,
सूरज सुलगाती है. . . . . . . . .
बावरी रात की जोगन,
चाँद कड़ा हर रोज़ बदलती है
रात की जोगन. . . . . . . . . . . .💙💜⚪
 .Gulzar
 

0 Comments:

Post a Comment

<< Home